WALI KISE KEHTE HAIN
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*वली किसे कहते हैं?*
📑PART - 1
➡प्यारे इस्लामी भाईयों और इस्लामी बहनों आज के दौर में कुछ मक्कार और ढ़ोंगी लोग पीरों, फ़क़ीरों, वलियों, मस्तों और दरवैशों का चोला पहनकर भोली भाली कम इ़ल्म अ़वाम का ईमान बर्बाद कर रहे हैं और अपनी जेबें भर रहे हैं!
ऐसे लोगों का पता कैसे लगाए कि वो वाक़ेई वली या पीर हैं या नही?
ऐसे ही सवालों के जवाब के लिए और अ़वाम की आंखें खोलने के लिए ये 4 Part (चार ह़िस्सों) की पोस्ट आपकी ख़िदमत में पेश की जा रही हैं आप इससे मुस्तफ़ीज़ हो कर दुसरों को भी इन बातों से आगाह करे ताकि हमारी कौम के भाई और बहनें ऐसे ढ़ोंगियों के शर्र से मह़फ़ूज़ रहे!
♧♧♧♧♧♧♧
👉 *सवाल-*👇
♧♧♧♧♧♧♧
फ़ी ज़माना कुछ लोग वली नही होते मगर अ़वामुन्नास ग़लत फ़हमी की बिना पर उन्हे वली समझ लेते हैं, इसके बारे में वज़ाह़त फ़रमाए और कैसे वलीय्युल्लाह के हाथ पर बैअ़त करनी चाहिए?
♧♧♧♧♧♧♧♧
👉 *जवाब-*📖👇
♧♧♧♧♧♧♧♧
अ़वामुन्नास को अपनी अक्ल के घोड़े दौड़ाने और अपनी त़रफ़ से औलियाए किराम रहिमहुमुल्लाहस्सलाम की खुद साख़्ता निशानियां मुक़र्रर करने के बजाए उ़लमाए ह़क़्क़ा अहले सुन्नत व जमाअ़त व बुज़ूर्गाने दीन رِضٔوَانُ اللّٰهِ تَعَالٰى عَلَئهِمٔ اَجٔمَعِئن के बयान कर्दा इर्शादात के मुत़ाबिक़ अ़मल करना चाहिए!
👇➡अ़वामुन्नास की खुद साख़्ता बयान कर्दा निशानियां और उनकी इस्लाह़ करते हुए मुफ़्स्सिरे शहीर, मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान رحمة الله تعالى عليه फ़रमाते हैं:
"लोगों ने वली की निशानियां अपनी त़रफ़ से मुक़र्रर कर ली हैं, कोई कहता हैं कि वली वो हैं जो करामत दिखाए मगर ये ग़लत हैं क्यूंकि शैत़ान बहुत से अ़जाइबात करके दिखाता हैं, सन्यासी जोगी सदहा करतब कर लेते हैं, दज्जाल तो ग़ज़ब ही करेगा मुर्दो को ज़िन्दा करेगा, बारिश बरसाएगा! अगर अ़जाइबात पर विलायत का मदार हो तो शैत़ान और दज्जाल भी वली होने चाहिए"!
➡सूफ़ियाए किराम رَحِمَهُمُ اللّٰهُ السَّلَام फ़रमाते हैं:
"हवा में उड़ना विलायत हो तो शैत़ान बड़ा वली होना चाहिए मगर ऐसा नही हो सकता"!
कोई कहता हैं कि वली वो हैं जो तारिकुद्दुनिया हो, घरबार न रखता हो, इसी त़रह़ कुछ लोग कहा करते हैं:
वो वली ही कैसा जो रखे पैसा, मगर ये भी धोखा हैं!
ह़ज़रते सय्यिदुना सुलैमान عليه الصلاة و السلام, ह़ज़रते सय्यिदुना उस्माने ग़नी رضى الله تعالى عنه, हुज़ूर ग़ौसुस्सक़लैन, इमामे आज़म अबू ह़नीफ़ा, मौलाना रूम رَحِمَهُمُ اللّٰهُ السَّلَام बड़े मालदार थे, क्या ये वली नही थे? ये वलीय्युल्लाह ही नही वलीगर थे, लेकिन इसके बर अक़्स बहुत से सन्यासी कुफ़्फ़ार तारिकुद्दुनिया हैं, क्या वो वली हैं? हरगिज़ नही!
💎तो आख़िर कामिल वली कौन❓
➡"कामिल वो हैं जिसके सर पर शरीअ़त हो, बग़लों में त़रीक़त, सामने दुनियावी तअ़ल्लुक़ात और इन सब को संभाले हुए राहे खुदा त़ै करता चला जाए! मस्जिद में नमाज़ी हो मैदान में ग़ाज़ी हो, कचहरी में क़ाज़ी और घर में पक्का दुनियादार (यानी दुनियावी मुआ़मलात में मसरूफ़े कार) ग़रज़ कि मस्जिद में आए तो मलाइका ए मुक़र्रबीन का नमूना बन जाए और बाज़ार में जाए तो मलाइका ए मुदब्बिराते अम्र (यानी दुनियावी काम की तदबीर करने वाले फ़िरिश्तों) की त़रह़ काम करे"!
➡कुछ लोग विलायत के बेहुदे दावे करते हैं मगर न नमाज़ पढ़ते हैं, न रोज़े रखते हैं और शैख़ी मारते हैं की हम काबे में नमाज़ पढ़ते हैं! سبحان الله नमाज़ तो काबे में पढ़े और रोटी व नज़राने मुरीद के घर से ले, ये पूरे शयात़ीन हैं!
जब तक होशो हवास क़ाइम हैं तब तक शरीअ़त के अह़काम मुआ़फ़ नही हो सकते!
♧♧♧♧♧♧♧♧♧
📗(शाने ह़बीबुर्रह़मान, सफ़ह़ा-299-301, मुलख़्ख़सन)
♧♧♧♧♧♧♧♧♧
⭐बैअ़त किससे की जाए?⭐
➡जिसके हाथ पर बैअ़त करना दुरुस्त हो उसकी चार शर्त़ें हैं,
चुनान्चे आला ह़ज़रत, इमाम अह़मद रज़ा ख़ान رحمة الله تعالى عليه फ़रमाते हैं:
➡"ऐसे शख़्स से बैअ़त का हुक्म हैं जो कम से कम ये चारों शर्ते़ं रखता हो
1- सुन्नी सह़ीह़ुल अ़क़ीदा हो,
2- इ़ल्मे दीन रखता हो,
3- फ़ासिक़ न हो,
4- उसका सिलसिला हुज़ूर صَلَّى اللّٰهُ تَعَالٰى عَلَئهِ وَ اٰلِهٖ وَسَلَّم तक मुत्तसिल हो!
अगर इन में से एक बात भी कम हैं तो उसके हाथ पर बैअ़त की इजाज़त नही"!
♧♧♧♧♧♧♧♧♧
📙(फ़तावा रज़विय्या, जिल्द-21, सफ़ह़ा-603)
♧♧♧♧♧♧♧♧♧
👇Not
अभी जारी हैं.....
📩अगली पोस्ट मज्ज़ूब (मस्तों) के मुतअ़ल्लिक़ होगी! इन्शा अल्लाह तआ़ला
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मीट जाये गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, अगर होजाए यक़ीन के..... *अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*वली किसे कहते हैं*
📑PART- 2
👉मज्ज़ूब किसे कहते हैं?👈
★★★★★★★
👉 *सवाल*👇
★★★★★★★
*कुछ लोग हर पागल व बे अ़क़्ल को वली समझ लेते हैं, क्या ये दुरुस्त हैं? और सच्चे मज्ज़ूब की पहचान क्या हैं? और कुछ लोग सच्चे मज्ज़ूबों (मस्तों) की नक़ल करते हुए उनके अफ़आल की इत्तिबाअ़ करते हैं जो ज़ाहिरी त़ौर पर ग़ैर शरई़ होते हैं, क्या ये सही हैं?*
★★★★★★★★
👉 *जवाब* 📔👇
★★★★★★★★
```हर पागल व बे अक्ल को वली समझ लेना सरासर ग़लत फ़हमी हैं! शायद लोग ये ख़याल करते हैं की पागल व दीवाने मज्ज़ूब (मस्त) हैं, मगर याद रखिए कि इसमें कोई शक नही कि ह़क़ीक़ी मज्ज़ूब अल्लाह عَزَّوَجَلَّ का वली होता हैं! मगर हर पागल व दीवाना मज्ज़ूब भी नही होता!
मज्ज़ूबीन अल्लाह عَزَّوَجَلَّ के वो मख़्सूस बन्दे हैं जो लत़ाइफ़ की बेदारी की वजह से जब यक दम रूह़ानिय्यत की बुलन्द मन्ज़िलों में मुस्तग़रक़ हो जाते हैं तो उनकी शुऊ़री सलाह़िय्यतें मग़्लूब हो जाती हैं जिसकी वजह से ये होशो हवास से बे नियाज़ होकर दुनियावी दिलचस्पियों से ला तअ़ल्लुक हो जाते हैं, इन्हे दीगर मख़्लूक़ से कोई वास्ता व तअ़ल्लुक नही होता! वो अज़ खुद न खाते हैं, न पीते हैं, न पहनते हैं, न नहाते हैं, इन्हें सर्दी गर्मी, नफ़ा नुक़्सान की ख़बर तक नही होती, अगर किसी ने खिला दिया तो खा पी लिया, पहना दिया तो पहन लिया, नहला दिया तो नहा लिया, सर्दियों में बग़ैर कम्बल चादर लिए सुकून और गर्मियों में लिह़ाफ़ ओढ़ ले तो परवाह नही यानी मज्ज़ूब ब ज़ाहिर होश में नही होता इसलिए वो शरीअ़त का मुकल्लफ़ भी नही होता यानी इस पर शरई़ अह़काम लागू नही होते मगर इस पर शरई़ अह़काम पेश किए जाए तो उन अह़काम की मुख़ालफ़त भी नही करता!
👉🏼ये भी याद रहे कि साह़िबे अ़क़्लो शुऊ़र (समझ बूझ रखने वालों) के लिए किसी मज्ज़ूब से सरज़द होने वाले ख़िलाफ़े शरअ़ कामों को अपने लिए हुज्जत व दलील बनाकर उसकी इत्तिबाअ़ करना या उनकी इत्तिबाअ़ में खुद को शरई़ अह़काम से फ़ारिग़ ख़याल करना जाएज़ नही!```
👉```आला ह़ज़रत, शाह इमाम अह़मद रज़ा ख़ान رحمة الله تعالى عليه फ़रमाते हैं:
"कुछ मज्ज़ूबीन ने जो कुछ ब ह़ाले जज़्ब किया वो सनद नही हो सकता, मज्ज़ूब अ़क़्ल व होशे दुनिया नही रखता! उसके काम, उसके इरादे व इख़्तियारे सालेह़ से नही होते वो माज़ूर हैं"!*```
★★★★★★★★★
👉 *हवाला* 📚👇
★★★★★★★★★
*(फ़तावा रज़विय्या,)*
*(जिल्द-21,)*
*(सफ़ह़ा-599)*
■■■■■■■■■■■
👉```एक और मक़ाम पर मज्ज़ूबों के बारे में इर्शाद फ़रमाते हैं:
"वो खुद सिल्सिले में होते हैं, मगर उनका कोई सिल्सिला फिर उन से आगे नही चलता! यानी मज्ज़ूब अपने सिल्सिले में मुन्तहा (यानी कामिल) होता हैं, अपने जैसा दुसरा मज्ज़ूब पैदा नही कर सकता! वजह ग़ालिबन ये हैं कि मज्ज़ूब मक़ामे है़रत ही में फ़ना हो जाता हैं और बक़ा ह़ासिल कर लेता हैं इसलिए उसकी ग़ैर की त़रफ़ तवज्जोह नही होती!```
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
📙(अन्वारे रज़ा, सफ़ह़ा-243)
〰〰〰〰〰〰〰〰
👉 *सच्चे मज्ज़ूब की पहचान*👈
👉```सच्चे मज्ज़ूब की पहचान ये हैं कि अगर उस पर शरई़ अह़काम पेश किए जाए तो होश में न होने के बावुजूद वो उन्हे रद्द नही करेगा और ना ही चैलेन्ज करेगा,```
👉 *जैसा कि आला ह़ज़रत, शाह इमाम अह़मद रज़ा ख़ान رحمة الله تعالى عليه फ़रमाते हैं:*
*"सच्चे मज्ज़ूब की पहचान हैं कि शरीअ़ते मुत़ह्हरा का कभी मुकाबला न करेगा"!*
◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆
(मल्फ़ूज़ाते आला ह़ज़रत, सफ़ह़ा-278)
◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆
*👇Not*
👉 *अभी जारी हैं*
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📩```अगली पोस्ट में पढ़े ज़ाहिरी और बातिनी शरीअ़त की ह़क़ीक़त! इन्शा अल्लाह عَزَّوَجَلَّ```
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*वली किसे कहते हैं?*
📑PART- 3
👇ज़ाहिरी और बात़िनी शरीअ़त की ह़क़ीक़त👇
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👉 *सवाल*👇
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```कुछ लोग अपने आप को मज्ज़ूब (मस्त) या फ़क़ीर का नाम देकर, ख़िलाफ़े शरई़ कामों को अपने लिए जाएज़ करार देते हुए कहते हैं कि ये त़रीक़त का मुआ़मला हैं, ये तो फ़क़ीरी लाइन हैं हर एक को समझ में नही आ सकती!
फिर अगर उन से नमाज़ पढ़ने को कहा जाए तो مَعَاذَاللّٰه عَزَّوَجَلَّ कहते हैं कि ये ज़ाहिरी शरीअ़त ज़ाहिरी लोगों के लिए हैं, हम बात़िनी अज्साम के साथ ख़ानए काबा या मदीने में नमाज़ पढ़ते हैं वग़ैरा वग़ैरा!
ऐसे लोगों के बारे में क्या हुक्मे शरई़ हैं?```
◆●◆●◆●◆●◆
👉 *जवाब*👇
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```शरीअ़त छोड़कर ख़िलाफ़े शरई़ कामों को त़रीक़त या फ़क़ीरी लाइन करार देना या त़रीक़त को शरीअ़त से अलग जानना यक़ीनन गुमराही हैं!
➡आला ह़ज़रत, शाह इमाम अह़मद रज़ा ख़ान رحمة الله تعالى عليه शरीअ़त और त़रीक़त के बाहमी तअ़ल्लुक़ात को यूं बयान फ़रमाते हैं कि:
"शरीअ़त मम्बअ़ हैं और त़रीक़त इसमें से निकला हुआ एक दरिया हैं! उ़मूमन किसी मम्बअ़ यानी पानी निकलने की जगह से अगर दरिया बहता हो तो उसे ज़मीनों को सैराब करने में मम्बअ़ की ह़ाजत नही होती लेकिन शरीअ़त वो मम्बअ़ हैं कि इससे निकले हुए दरिया यानी त़रीक़त को हर आन इसकी ह़ाजत हैं कि अगर शरीअ़त के मम्बअ़ से त़रीक़त के दरिया का तअ़ल्लुक़ टूट जाए तो सिर्फ़ येही नही कि आइन्दा के लिए इसमें पानी नही आएगा बल्कि ये तअ़ल्लुक़ टूटते ही दरियाए त़रीक़त फ़ौरन फ़ना हो जाएगा"!```
◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆
*(फ़तावा रज़विय्या,* *जिल्द-21,*
*(सफ़ह़ा-525, मुलख़्ख़सन)*
👉```सदरुश्शरिअ़ा ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना मुफ़्ती मुह़म्मद अमजद अ़ली आज़मी رحمة الله تعالى عليه फ़रमाते हैं:
"त़रीक़त मुनाफ़िये शरीअ़त (यानी शरीअ़त के ख़िलाफ़) नही वो शरीअ़त का ही बात़िनी ह़िस्सा हैं, कुछ जाहिल मुतसव्विफ़ जो ये कह दिया करते हैं कि "त़रीक़त और हैं शरीअ़त और" महज़ गुमराही हैं और इस ज़ोमे बातिल (ग़लत ख़याल) की वजह से अपने आप को शरीअ़त से आज़ाद समझना सरीह़ कुफ़्र व इल्ह़ाद (कुफ़्र व बे दीनी) हैं!
अह़कामे शरइ़य्या की पाबन्दी से कोई वली कैसा ही अ़ज़ीम हो सुबुक दोश नही हो सकता!
कुछ जाहिल जो ये बक देते हैं कि "शरीअ़त रास्ता हैं, रास्ते की ह़ाजत उनको जो मक़्सद तक न पहुंचे हो, हम तो पहुंच गए"!```
👉```सय्यिदुत्त़ाइफ़ा ह़ज़रते जुनैद बग़दादी رحمة الله تعالى عليه ने उन्हे (ऐसे जाहिलों को) फ़रमाया:
"صَدَقُؤا لَقَدٔ وَصَلُؤا، وَلٰكِنٔ اِلٰى اَئنَ؟ اِلٰى النَّار"
यानी "वो सच कहते हैं बेशक पहुंचे, मगर कहां? जहन्नम को"! (اليواقيت والجواهر، الفصل الرابع، المبحث السادس و العشرون، باختلاف بعض الالفاظ، ص-٢٠٦)```
👉```अलबत्ता अगर मज्ज़ूबियत से अ़क़्ले तक्लीफ़ी ज़ाइल हो गई हो जैसे ग़शी वाला तो उससे क़लमे शरीअ़त उठ जाएगा मगर ये भी समझ लो जो इस क़िस्म का होगा उसकी ऐसी बातें कभी न होंगी, शरीअ़त का मुक़ाबला कभी नही करेगा!```
◆●◆●◆●●●◆●◆●◆●◆
(बहारे शरीअ़त, ह़िस्सा अव्वल, जिल्द-1, सफ़ह़ा-265-267)
◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆
*👇Not*
⏩ *अभी जारी हैं*
📩अगली पोस्ट में पढ़े "क्या वली गुनाह कर सकता हैं?"
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*वली किसे कहते हैं?*
📑PART- 4
*क्या वली गुनाह कर सकता हैं?*
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👉 *सवाल*👇
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*क्या वली कबीरा गुनाहों का इरतिकाब कर सकता हैं? और क्या वली का आ़लिम होना ज़रूरी हैं?*
●◆◆◆◆◆◆◆◆●
👉 *जवाब*📗👇
●◆◆◆◆◆◆◆◆●
```गुनाहों से मासूम होना सिर्फ़ अम्बियाए किराम عليه الصلاة و السلام और फ़िरिश्तों का ख़ास्सा हैं कि ह़िफ़्ज़े इलाही के वादे के सबब इनसे गुनाहों का सादिर होना शरअ़न मुहाल (यानी ना मुम्किन) हैं, इनके अलावा से गुनाह होना मुहाल (ना मुम्किन) नही, लेकिन अल्लाह عَزَّوَجَلَّ अपनी रह़मत से औलियाए किराम رَحِمَهُمُ اللّٰهُ السَّلَام को गुनाहों से मह़फ़ूज़ रखता हैं!
👉चुनान्चे ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना मुफ़्ती मुह़म्मद अमजद अ़ली आज़मी رحمة الله تعالى عليه फ़रमाते हैं:
"नबी का मासूम होना ज़रूरी हैं और ये इ़स्मते नबी और मलक (फ़िरिश्ते) का ख़ास्सा हैं कि नबी और फ़िरिश्ते के सिवा कोई मासूम नही, इमामों को अम्बिया (عليه الصلاة و السلام) की त़रह़ मासूम समझना गुमराही व बद दीनी हैं!
इ़स्मते अम्बिया का ये मतलब हैं कि इनके लिए ह़िफ़्ज़े इलाही का वादा हो लिया, जिनके सबब इनसे गुनाह सादिर होना शरअ़न मुहाल हैं ब ख़िलाफ़ अइम्मा व अकाबिर औलिया رَحِمَهُمُ اللّٰهُ السَّلَام के कि अल्लाह عَزَّوَجَلَّ इन्हे मह़फ़ूज़ रखता हैं, इनसे गुनाह होता नही मगर हो तो शरअ़न मुहाल (यानी ना मुम्किन) भी नही"!```
◆◆◆◆◆◆◆◆◆
*हवाला*📚👇
*(बहारे शरीअ़त, ह़िस्सए अव्वल, जिल्द-1, सफ़ह़ा-38,39)*
👉विलायत बे इ़ल्म को नही मिलती👈
👉 *"विलायत बे इ़ल्म को नही मिलती, ख़्वाह इ़ल्म बत़ौरे ज़ाहिर ह़ासिल किया हो या इस (विलायत के) मर्तबे पर पहुंचने से पेश्तर अल्लाह عَزَّوَجَلَّ ने उस पर उ़लूम मुन्कशिफ़ (ज़ाहिर) कर दिए हो"!*
*(बहारे शरीअ़त, जिल्द-1, सफ़ह़ा-264, मकतबतुल मदीना)*
👉```आला ह़ज़रत رحمة الله تعالى عليه फ़रमाते हैं:
"ह़ाशा, न शरीअ़त व त़रीक़त दो राहें हैं न औलिया कभी ग़ैर उ़लमा हो सकते हैं! ह़ज़रते अ़ल्लामा अ़ब्दुर्रऊफ़ मनावी رحمة الله تعالى عليه शर्हे जामेउस्सग़ीर में और आरिफ़ बिल्लाह सय्यिद अ़ब्दुल ग़नी नाबुलुसी رحمة الله تعالى عليه हदीकए नदिय्या में फ़रमाते हैं कि इमाम मालिक رحمة الله تعالى عليه ने फ़रमाया:
"इ़ल्मे बात़िन न जानेगा मगर वो जो इ़ल्मे ज़ाहिर जानता हैं"!
ह़ज़रते सय्यिदुना इमाम शाफ़ेई رحمة الله تعالى عليه फ़रमाते हैं:
"अल्लाह عَزَّوَجَلَّ ने कभी किसी जाहिल को अपना वली न बनाया, यानी बनाना चाहा तो पहले उसे इ़ल्म दे दिया उसके बाद वली किया जो इ़ल्मे ज़ाहिर नही रखता इ़ल्मे बात़िन कि इसका समरा व नतीजा हैं क्यूंकर पा सकता हैं"!```
*(फ़तावा रज़विय्या, जिल्द-21, सफ़ह़ा-530, मुलख़्ख़सन)*
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➡प्यारे इस्लामी भाईयों और इस्लामी बहनों आज के दौर में कुछ मक्कार और ढ़ोंगी लोग पीरों, फ़क़ीरों, वलियों, मस्तों और दरवैशों का चोला पहनकर भोली भाली कम इ़ल्म अ़वाम का ईमान बर्बाद कर रहे हैं और अपनी जेबें भर रहे हैं!
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कोई कहता हैं कि वली वो हैं जो तारिकुद्दुनिया हो, घरबार न रखता हो, इसी त़रह़ कुछ लोग कहा करते हैं:
वो वली ही कैसा जो रखे पैसा, मगर ये भी धोखा हैं!
ह़ज़रते सय्यिदुना सुलैमान عليه الصلاة و السلام, ह़ज़रते सय्यिदुना उस्माने ग़नी رضى الله تعالى عنه, हुज़ूर ग़ौसुस्सक़लैन, इमामे आज़म अबू ह़नीफ़ा, मौलाना रूम رَحِمَهُمُ اللّٰهُ السَّلَام बड़े मालदार थे, क्या ये वली नही थे? ये वलीय्युल्लाह ही नही वलीगर थे, लेकिन इसके बर अक़्स बहुत से सन्यासी कुफ़्फ़ार तारिकुद्दुनिया हैं, क्या वो वली हैं? हरगिज़ नही!
💎तो आख़िर कामिल वली कौन❓
➡"कामिल वो हैं जिसके सर पर शरीअ़त हो, बग़लों में त़रीक़त, सामने दुनियावी तअ़ल्लुक़ात और इन सब को संभाले हुए राहे खुदा त़ै करता चला जाए! मस्जिद में नमाज़ी हो मैदान में ग़ाज़ी हो, कचहरी में क़ाज़ी और घर में पक्का दुनियादार (यानी दुनियावी मुआ़मलात में मसरूफ़े कार) ग़रज़ कि मस्जिद में आए तो मलाइका ए मुक़र्रबीन का नमूना बन जाए और बाज़ार में जाए तो मलाइका ए मुदब्बिराते अम्र (यानी दुनियावी काम की तदबीर करने वाले फ़िरिश्तों) की त़रह़ काम करे"!
➡कुछ लोग विलायत के बेहुदे दावे करते हैं मगर न नमाज़ पढ़ते हैं, न रोज़े रखते हैं और शैख़ी मारते हैं की हम काबे में नमाज़ पढ़ते हैं! سبحان الله नमाज़ तो काबे में पढ़े और रोटी व नज़राने मुरीद के घर से ले, ये पूरे शयात़ीन हैं!
जब तक होशो हवास क़ाइम हैं तब तक शरीअ़त के अह़काम मुआ़फ़ नही हो सकते!
♧♧♧♧♧♧♧♧♧
📗(शाने ह़बीबुर्रह़मान, सफ़ह़ा-299-301, मुलख़्ख़सन)
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⭐बैअ़त किससे की जाए?⭐
➡जिसके हाथ पर बैअ़त करना दुरुस्त हो उसकी चार शर्त़ें हैं,
चुनान्चे आला ह़ज़रत, इमाम अह़मद रज़ा ख़ान رحمة الله تعالى عليه फ़रमाते हैं:
➡"ऐसे शख़्स से बैअ़त का हुक्म हैं जो कम से कम ये चारों शर्ते़ं रखता हो
1- सुन्नी सह़ीह़ुल अ़क़ीदा हो,
2- इ़ल्मे दीन रखता हो,
3- फ़ासिक़ न हो,
4- उसका सिलसिला हुज़ूर صَلَّى اللّٰهُ تَعَالٰى عَلَئهِ وَ اٰلِهٖ وَسَلَّم तक मुत्तसिल हो!
अगर इन में से एक बात भी कम हैं तो उसके हाथ पर बैअ़त की इजाज़त नही"!
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📙(फ़तावा रज़विय्या, जिल्द-21, सफ़ह़ा-603)
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👇Not
अभी जारी हैं.....
📩अगली पोस्ट मज्ज़ूब (मस्तों) के मुतअ़ल्लिक़ होगी! इन्शा अल्लाह तआ़ला
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*वली किसे कहते हैं*
📑PART- 2
👉मज्ज़ूब किसे कहते हैं?👈
★★★★★★★
👉 *सवाल*👇
★★★★★★★
*कुछ लोग हर पागल व बे अ़क़्ल को वली समझ लेते हैं, क्या ये दुरुस्त हैं? और सच्चे मज्ज़ूब की पहचान क्या हैं? और कुछ लोग सच्चे मज्ज़ूबों (मस्तों) की नक़ल करते हुए उनके अफ़आल की इत्तिबाअ़ करते हैं जो ज़ाहिरी त़ौर पर ग़ैर शरई़ होते हैं, क्या ये सही हैं?*
★★★★★★★★
👉 *जवाब* 📔👇
★★★★★★★★
```हर पागल व बे अक्ल को वली समझ लेना सरासर ग़लत फ़हमी हैं! शायद लोग ये ख़याल करते हैं की पागल व दीवाने मज्ज़ूब (मस्त) हैं, मगर याद रखिए कि इसमें कोई शक नही कि ह़क़ीक़ी मज्ज़ूब अल्लाह عَزَّوَجَلَّ का वली होता हैं! मगर हर पागल व दीवाना मज्ज़ूब भी नही होता!
मज्ज़ूबीन अल्लाह عَزَّوَجَلَّ के वो मख़्सूस बन्दे हैं जो लत़ाइफ़ की बेदारी की वजह से जब यक दम रूह़ानिय्यत की बुलन्द मन्ज़िलों में मुस्तग़रक़ हो जाते हैं तो उनकी शुऊ़री सलाह़िय्यतें मग़्लूब हो जाती हैं जिसकी वजह से ये होशो हवास से बे नियाज़ होकर दुनियावी दिलचस्पियों से ला तअ़ल्लुक हो जाते हैं, इन्हे दीगर मख़्लूक़ से कोई वास्ता व तअ़ल्लुक नही होता! वो अज़ खुद न खाते हैं, न पीते हैं, न पहनते हैं, न नहाते हैं, इन्हें सर्दी गर्मी, नफ़ा नुक़्सान की ख़बर तक नही होती, अगर किसी ने खिला दिया तो खा पी लिया, पहना दिया तो पहन लिया, नहला दिया तो नहा लिया, सर्दियों में बग़ैर कम्बल चादर लिए सुकून और गर्मियों में लिह़ाफ़ ओढ़ ले तो परवाह नही यानी मज्ज़ूब ब ज़ाहिर होश में नही होता इसलिए वो शरीअ़त का मुकल्लफ़ भी नही होता यानी इस पर शरई़ अह़काम लागू नही होते मगर इस पर शरई़ अह़काम पेश किए जाए तो उन अह़काम की मुख़ालफ़त भी नही करता!
👉🏼ये भी याद रहे कि साह़िबे अ़क़्लो शुऊ़र (समझ बूझ रखने वालों) के लिए किसी मज्ज़ूब से सरज़द होने वाले ख़िलाफ़े शरअ़ कामों को अपने लिए हुज्जत व दलील बनाकर उसकी इत्तिबाअ़ करना या उनकी इत्तिबाअ़ में खुद को शरई़ अह़काम से फ़ारिग़ ख़याल करना जाएज़ नही!```
👉```आला ह़ज़रत, शाह इमाम अह़मद रज़ा ख़ान رحمة الله تعالى عليه फ़रमाते हैं:
"कुछ मज्ज़ूबीन ने जो कुछ ब ह़ाले जज़्ब किया वो सनद नही हो सकता, मज्ज़ूब अ़क़्ल व होशे दुनिया नही रखता! उसके काम, उसके इरादे व इख़्तियारे सालेह़ से नही होते वो माज़ूर हैं"!*```
★★★★★★★★★
👉 *हवाला* 📚👇
★★★★★★★★★
*(फ़तावा रज़विय्या,)*
*(जिल्द-21,)*
*(सफ़ह़ा-599)*
■■■■■■■■■■■
👉```एक और मक़ाम पर मज्ज़ूबों के बारे में इर्शाद फ़रमाते हैं:
"वो खुद सिल्सिले में होते हैं, मगर उनका कोई सिल्सिला फिर उन से आगे नही चलता! यानी मज्ज़ूब अपने सिल्सिले में मुन्तहा (यानी कामिल) होता हैं, अपने जैसा दुसरा मज्ज़ूब पैदा नही कर सकता! वजह ग़ालिबन ये हैं कि मज्ज़ूब मक़ामे है़रत ही में फ़ना हो जाता हैं और बक़ा ह़ासिल कर लेता हैं इसलिए उसकी ग़ैर की त़रफ़ तवज्जोह नही होती!```
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
📙(अन्वारे रज़ा, सफ़ह़ा-243)
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👉 *सच्चे मज्ज़ूब की पहचान*👈
👉```सच्चे मज्ज़ूब की पहचान ये हैं कि अगर उस पर शरई़ अह़काम पेश किए जाए तो होश में न होने के बावुजूद वो उन्हे रद्द नही करेगा और ना ही चैलेन्ज करेगा,```
👉 *जैसा कि आला ह़ज़रत, शाह इमाम अह़मद रज़ा ख़ान رحمة الله تعالى عليه फ़रमाते हैं:*
*"सच्चे मज्ज़ूब की पहचान हैं कि शरीअ़ते मुत़ह्हरा का कभी मुकाबला न करेगा"!*
◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆
(मल्फ़ूज़ाते आला ह़ज़रत, सफ़ह़ा-278)
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*👇Not*
👉 *अभी जारी हैं*
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📩```अगली पोस्ट में पढ़े ज़ाहिरी और बातिनी शरीअ़त की ह़क़ीक़त! इन्शा अल्लाह عَزَّوَجَلَّ```
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*वली किसे कहते हैं?*
📑PART- 3
👇ज़ाहिरी और बात़िनी शरीअ़त की ह़क़ीक़त👇
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👉 *सवाल*👇
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```कुछ लोग अपने आप को मज्ज़ूब (मस्त) या फ़क़ीर का नाम देकर, ख़िलाफ़े शरई़ कामों को अपने लिए जाएज़ करार देते हुए कहते हैं कि ये त़रीक़त का मुआ़मला हैं, ये तो फ़क़ीरी लाइन हैं हर एक को समझ में नही आ सकती!
फिर अगर उन से नमाज़ पढ़ने को कहा जाए तो مَعَاذَاللّٰه عَزَّوَجَلَّ कहते हैं कि ये ज़ाहिरी शरीअ़त ज़ाहिरी लोगों के लिए हैं, हम बात़िनी अज्साम के साथ ख़ानए काबा या मदीने में नमाज़ पढ़ते हैं वग़ैरा वग़ैरा!
ऐसे लोगों के बारे में क्या हुक्मे शरई़ हैं?```
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👉 *जवाब*👇
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```शरीअ़त छोड़कर ख़िलाफ़े शरई़ कामों को त़रीक़त या फ़क़ीरी लाइन करार देना या त़रीक़त को शरीअ़त से अलग जानना यक़ीनन गुमराही हैं!
➡आला ह़ज़रत, शाह इमाम अह़मद रज़ा ख़ान رحمة الله تعالى عليه शरीअ़त और त़रीक़त के बाहमी तअ़ल्लुक़ात को यूं बयान फ़रमाते हैं कि:
"शरीअ़त मम्बअ़ हैं और त़रीक़त इसमें से निकला हुआ एक दरिया हैं! उ़मूमन किसी मम्बअ़ यानी पानी निकलने की जगह से अगर दरिया बहता हो तो उसे ज़मीनों को सैराब करने में मम्बअ़ की ह़ाजत नही होती लेकिन शरीअ़त वो मम्बअ़ हैं कि इससे निकले हुए दरिया यानी त़रीक़त को हर आन इसकी ह़ाजत हैं कि अगर शरीअ़त के मम्बअ़ से त़रीक़त के दरिया का तअ़ल्लुक़ टूट जाए तो सिर्फ़ येही नही कि आइन्दा के लिए इसमें पानी नही आएगा बल्कि ये तअ़ल्लुक़ टूटते ही दरियाए त़रीक़त फ़ौरन फ़ना हो जाएगा"!```
◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆
*(फ़तावा रज़विय्या,* *जिल्द-21,*
*(सफ़ह़ा-525, मुलख़्ख़सन)*
👉```सदरुश्शरिअ़ा ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना मुफ़्ती मुह़म्मद अमजद अ़ली आज़मी رحمة الله تعالى عليه फ़रमाते हैं:
"त़रीक़त मुनाफ़िये शरीअ़त (यानी शरीअ़त के ख़िलाफ़) नही वो शरीअ़त का ही बात़िनी ह़िस्सा हैं, कुछ जाहिल मुतसव्विफ़ जो ये कह दिया करते हैं कि "त़रीक़त और हैं शरीअ़त और" महज़ गुमराही हैं और इस ज़ोमे बातिल (ग़लत ख़याल) की वजह से अपने आप को शरीअ़त से आज़ाद समझना सरीह़ कुफ़्र व इल्ह़ाद (कुफ़्र व बे दीनी) हैं!
अह़कामे शरइ़य्या की पाबन्दी से कोई वली कैसा ही अ़ज़ीम हो सुबुक दोश नही हो सकता!
कुछ जाहिल जो ये बक देते हैं कि "शरीअ़त रास्ता हैं, रास्ते की ह़ाजत उनको जो मक़्सद तक न पहुंचे हो, हम तो पहुंच गए"!```
👉```सय्यिदुत्त़ाइफ़ा ह़ज़रते जुनैद बग़दादी رحمة الله تعالى عليه ने उन्हे (ऐसे जाहिलों को) फ़रमाया:
"صَدَقُؤا لَقَدٔ وَصَلُؤا، وَلٰكِنٔ اِلٰى اَئنَ؟ اِلٰى النَّار"
यानी "वो सच कहते हैं बेशक पहुंचे, मगर कहां? जहन्नम को"! (اليواقيت والجواهر، الفصل الرابع، المبحث السادس و العشرون، باختلاف بعض الالفاظ، ص-٢٠٦)```
👉```अलबत्ता अगर मज्ज़ूबियत से अ़क़्ले तक्लीफ़ी ज़ाइल हो गई हो जैसे ग़शी वाला तो उससे क़लमे शरीअ़त उठ जाएगा मगर ये भी समझ लो जो इस क़िस्म का होगा उसकी ऐसी बातें कभी न होंगी, शरीअ़त का मुक़ाबला कभी नही करेगा!```
◆●◆●◆●●●◆●◆●◆●◆
(बहारे शरीअ़त, ह़िस्सा अव्वल, जिल्द-1, सफ़ह़ा-265-267)
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*👇Not*
⏩ *अभी जारी हैं*
📩अगली पोस्ट में पढ़े "क्या वली गुनाह कर सकता हैं?"
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*वली किसे कहते हैं?*
📑PART- 4
*क्या वली गुनाह कर सकता हैं?*
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👉 *सवाल*👇
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*क्या वली कबीरा गुनाहों का इरतिकाब कर सकता हैं? और क्या वली का आ़लिम होना ज़रूरी हैं?*
●◆◆◆◆◆◆◆◆●
👉 *जवाब*📗👇
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```गुनाहों से मासूम होना सिर्फ़ अम्बियाए किराम عليه الصلاة و السلام और फ़िरिश्तों का ख़ास्सा हैं कि ह़िफ़्ज़े इलाही के वादे के सबब इनसे गुनाहों का सादिर होना शरअ़न मुहाल (यानी ना मुम्किन) हैं, इनके अलावा से गुनाह होना मुहाल (ना मुम्किन) नही, लेकिन अल्लाह عَزَّوَجَلَّ अपनी रह़मत से औलियाए किराम رَحِمَهُمُ اللّٰهُ السَّلَام को गुनाहों से मह़फ़ूज़ रखता हैं!
👉चुनान्चे ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना मुफ़्ती मुह़म्मद अमजद अ़ली आज़मी رحمة الله تعالى عليه फ़रमाते हैं:
"नबी का मासूम होना ज़रूरी हैं और ये इ़स्मते नबी और मलक (फ़िरिश्ते) का ख़ास्सा हैं कि नबी और फ़िरिश्ते के सिवा कोई मासूम नही, इमामों को अम्बिया (عليه الصلاة و السلام) की त़रह़ मासूम समझना गुमराही व बद दीनी हैं!
इ़स्मते अम्बिया का ये मतलब हैं कि इनके लिए ह़िफ़्ज़े इलाही का वादा हो लिया, जिनके सबब इनसे गुनाह सादिर होना शरअ़न मुहाल हैं ब ख़िलाफ़ अइम्मा व अकाबिर औलिया رَحِمَهُمُ اللّٰهُ السَّلَام के कि अल्लाह عَزَّوَجَلَّ इन्हे मह़फ़ूज़ रखता हैं, इनसे गुनाह होता नही मगर हो तो शरअ़न मुहाल (यानी ना मुम्किन) भी नही"!```
◆◆◆◆◆◆◆◆◆
*हवाला*📚👇
*(बहारे शरीअ़त, ह़िस्सए अव्वल, जिल्द-1, सफ़ह़ा-38,39)*
👉विलायत बे इ़ल्म को नही मिलती👈
👉 *"विलायत बे इ़ल्म को नही मिलती, ख़्वाह इ़ल्म बत़ौरे ज़ाहिर ह़ासिल किया हो या इस (विलायत के) मर्तबे पर पहुंचने से पेश्तर अल्लाह عَزَّوَجَلَّ ने उस पर उ़लूम मुन्कशिफ़ (ज़ाहिर) कर दिए हो"!*
*(बहारे शरीअ़त, जिल्द-1, सफ़ह़ा-264, मकतबतुल मदीना)*
👉```आला ह़ज़रत رحمة الله تعالى عليه फ़रमाते हैं:
"ह़ाशा, न शरीअ़त व त़रीक़त दो राहें हैं न औलिया कभी ग़ैर उ़लमा हो सकते हैं! ह़ज़रते अ़ल्लामा अ़ब्दुर्रऊफ़ मनावी رحمة الله تعالى عليه शर्हे जामेउस्सग़ीर में और आरिफ़ बिल्लाह सय्यिद अ़ब्दुल ग़नी नाबुलुसी رحمة الله تعالى عليه हदीकए नदिय्या में फ़रमाते हैं कि इमाम मालिक رحمة الله تعالى عليه ने फ़रमाया:
"इ़ल्मे बात़िन न जानेगा मगर वो जो इ़ल्मे ज़ाहिर जानता हैं"!
ह़ज़रते सय्यिदुना इमाम शाफ़ेई رحمة الله تعالى عليه फ़रमाते हैं:
"अल्लाह عَزَّوَجَلَّ ने कभी किसी जाहिल को अपना वली न बनाया, यानी बनाना चाहा तो पहले उसे इ़ल्म दे दिया उसके बाद वली किया जो इ़ल्मे ज़ाहिर नही रखता इ़ल्मे बात़िन कि इसका समरा व नतीजा हैं क्यूंकर पा सकता हैं"!```
*(फ़तावा रज़विय्या, जिल्द-21, सफ़ह़ा-530, मुलख़्ख़सन)*
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